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ਸੱਚ ਕੀ ਹੈ?

ਬੜਾ ਸਵਾਦਲਾ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਹੈ “ਸੱਚ ਕੀ ਹੈ”? ਇਹ ਇਕ ਐਸਾ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਕਿਸੇ ਕੋਲ ਵੀ ਨਹੀਂ। ਕਈ ਸੱਚ ਨੂੰ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਤੁ...

उत्तम कविता

  नानक सायर एव कहित है

सतगुरु नानक वाणी में वर्णित छंदों की व्याख्या
                                                                ठाकुर दलीप सिंघ जी  
                  सतगुरु नानक देव जी ने अपने आप को शायर यानि कवि भी माना है। कवि रूप में गुरु जी ने कविता रची है। जिस में से ९४७ / 947 श्लोक / शब्द श्री गुरु - ग्रंथ साहिब जी में अंकित हैं। यह अत्यंत मनोहर कविता रूपी वाणी, छंदबद्ध और संगीतमई है। रागों के नाम तो गुरु जी ने लिख दिए परन्तु आमतौर पर (कुछ को छोड़कर), छंदों के नाम नहीं लिखे। इस मनोहर वाणी  का रसास्वादन करने के लिए प्रत्येक "गुरु नानक नाम लेवा" को संगीत एवं काव्य शास्त्र का ज्ञान होना अत्यावश्यक है। छंदबद्ध काव्य लेखन, छंदमुक्त काव्य की अपेक्षा अधिक कठिन है परन्तु काव्य का छंदबद्ध रूप अधिक  रसदायक होता है। छंदरहित कविता के बारे में निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर आप मेरे साथ सहमत होंगे। 
घनाकश्री छंद :- जलध निरस फीको, कंज बिन ताल फीको, मधुप के लेखे फूल फीको,मकरंद बिन। 
                        मित्र बिन प्रेम फीको, नेम भाव हीन फीको, गृह अति फीको बिन हेम अरु नंद बिन।      
                       दान बिन मान फीको, गान बिन तान फीको, व्याख्या बिना अम्ल  रैन सैन चंद बिन। 
                       न्याय बिन राज, कवि बिन है समाज फीको, त्यों 'हरि वृजेश' पाठ फीको ज्ञान छंद बिन 
                                           छंदबद्ध कविता की रसदायकता विश्वविख्यात है। छंदबद्ध कविता में कही गई बात शीघ्र तथा सरलता से याद हो जाती है। लम्बी बात कम शब्दों में कही जा सकती है। साधारण बात को छंदबद्ध कविता से अत्यंत रोचक बना कर श्रोताओं को आनंदित  किया जा सकता है। श्रोतागण उस कविता को तुरंत कंठस्थ भी कर लेते हैं और साधारण परन्तु छंद द्वारा प्रस्तुत रोचक बात को बड़ी सरलता से अपने हृदय में ग्रहण भी कर लेते हैं। भारतीय साहित्य में छंदबद्ध कविता का सर्वोत्तम स्थान है। इसी कारण भारत के महान कवियों ने छंदबद्ध काव्य रचनाओं द्वारा अपनी लोकप्रियता  बनाई है। 
                   
                                       श्री आदि  ग्रंथ साहिब जी में सम्पूर्ण वाणी छंदबद्ध है। हमारे गुरु साहिबानों ने सारी गुरु वाणी , संगीत तथा छंदों में ही रची है। ३१/ 31 राग और कई प्रकार के छंद श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित है परन्तु आश्चर्य और खेद की बात है कि सिक्ख पंथ को गुरु वाणी में प्रयुक्त छंदों के विषय में ज्ञान ही नहीं है एवं कभी उन्होंने इसके विषय में सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझी। कीर्तन प्रथा प्रचलित होने के कारण ३१ / 31 रागों के संबंध में तो कुछ खोज हुई है तथा कुछ सिक्खों को स्वर ज्ञान भी है परन्तु गुरु वाणी के छंद ज्ञान के संबंध में सिक्ख सर्वथा अनभिज्ञ हैं। गुरु वाणी के छंद ज्ञान के विषय में सिक्ख विद्वानों को शोध करके लिखने की आवश्यकता है।  जगत गुरु जी की जगत प्रसिद्ध वाणी 'जपु जी साहिब' में कई प्रकार के छंद काव्य रस हैं परन्तु हमने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। चाहे इस वाणी के ६००/600 से अधिक सटीक तथा अनुवाद कई भाषाओं में हो चुके हैं परन्तु 'जपु जी साहिब' के छंद और काव्य रसों के विषय में शायद ही किसी ने कोई व्याख्या की हो। विचारणीय बात यह है कि प्रतिदिन पढ़ी - सुनी जाने वाली वाणी "जपु जी साहिब तथा आसा दी वार' में वर्णित छंदों के विषय में यदि सिक्खों को ज्ञान नहीं तो अन्य किस वाणी के विषय में होगा ?
                                              सतगुरु नानक देव जी के ५५० वें प्रकाश पर्व पर उनकी वाणी में से कुछ छंदों के विषय में निम्लिखित जानकारी पाठकों को समर्पित है। परन्तु यह जानकारी अत्यंत संक्षिप्त है, विद्वान् सज्जन इस विषय को आगे बढ़ाने की कृपा करें। 
                                     सम्पूर्ण गुरु वाणी, छंद रचना में है। कई नए छंद हैं, जो "पिंगल" आदि काव्य शास्त्र के ग्रन्थों में नहीं है। कई छंदों के रूप भिन्न हैं। इस कारण कई विद्वान अज्ञानतावश  ही कह देते हैं कि गुरु वाणी छंदबद्ध नहीं है। परन्तु ऐसा नहीं है, वास्तव में हमें गुरु वाणी में दिए गए छंदों के विषय में ज्ञान ही नहीं है। गुरु वाणी में वर्णित छंदों के विषय में ज्ञान होने के उपरांत हमारे विचार बदल जायेंगे। गुरु नानक वाणी छंद काव्य तो है ही, परन्तु इसके साथ - साथ इस में कविता के १३ रस तथा संगीत का मधुर रस भी सम्मिलित है ( कविता के तेरह रस ये हैं :- श्रृंगार रस, हास्य रस, करुणा रस, रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस, वीभत्स रस, अद्भुत रस, शांत रस, वात्सल्य रस, सखा रस, दास रस, भक्ति रस ) इन रसों के उदाहरण एवं व्याख्या एक अलग लेख में की गई है। गुरु वाणी में रागों के नाम तो गुरु जी ने लिख दिए, परन्तु छंद रचना और काव्य रसों  के रसास्वादन हेतु पाठकों एवं श्रोताओं को स्वयं प्रयत्न करने की आवश्यकता है। मेरे इस संक्षेप प्रयत्न से प्रेमीजन गुण-ग्राह्य पाठक आनंद ले कर यह जान सकेंगे कि सतगुरु नानक देव जी की वाणी में कैसा मनोहर काव्य है। सतगुरु नानक जी की वाणी में छंदों के नाम लिखे होने के कारण, प्रेमी पाठकों  को काव्य शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके, छंद की लय से, छंद का नाम स्वयं जानने की आवश्यकता है तभी हम गुरु वाणी का वास्तविक आनंद ले सकेंगे। 
               भक्ति भाव से परिपूर्ण, भक्ति मार्ग की रचना, भक्ति संगीत में रचित है तथा  रागों में गायन करने के लिए, रागों में उच्चारण की हुई गुरु वाणी मुख्य रूप से संगीत पर आधारित है। इसलिए 'टेकअर्थात  'रहाउ' वाली पंक्तियों का तोल अन्य शब्दों से भिन्न है। ऐसे ही कई अन्य पद भी संगीत से संबंधित हैं जो कि छंद के मापतोल में शामिल नहीं हैं। कई स्थानों पर छन्दों में पंक्तियों की गिनती घटने-बढ़ने के भी उपरोक्त ही कारण हैं। "जन", "दास", "कहै", "नानक" आदि शब्द भी छंद के परिमाप से बाहर हैं। क्योंकि,  गुरु वाणी गायन में, राग के अनुसार "टेक", "अस्थाई", "अंतरा", "अभोग" इत्यादि को मुख्य रखा गया है। संगीत और काव्य - शास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके ही गुरु वाणी सही रूप से पढ़ी, समझी गाई जा सकती है। 
.सवैया  :- अत्यंत रोचक एवं प्यारा सा मनोहर छंद "सवैया", जिस के कई रूप हैं। जिसमें से एक रूप है "वीर सवैया " सवैये में चार पंक्तियाँ होती हैं।  सतगुरु नानक देव जी की वाणी में सवैये का "वीर रूप" मिलता है।  "जा की भगति करहि जन पूरे मुनि जन सेवहि गुर वीचारि"।।  ( राग गउड़ी पन्ना - ४८९ / 489 )  
. सरसी छंद :- यह छंद चार पंक्तियों का होता है। 
() "मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु।। बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारू"।। ( आसा दी वार पन्ना  -४६५ /465 )
() "एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ।। इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु"।।  "जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु।। ओहु वेखै ओना नदरि आवै बहुता एहु विडाणु"।।   ( जपु जी साहिब पन्ना  -/7)
श्लोक :- सतगुरु नानक वाणी में 'श्लोक' शीर्षक के अंतर्गत कई प्रकार के छंद लिखे गए हैं। 
 () हाकल छंद  :- इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। "गलि माला तिलकु लिलाटं।। दुइ धोती बसत्र कपाटं।। जे जाणसि ब्रहमं करमं।। सभि फोकट निसचउ करमं" ।।  ( आसा दी वार पन्ना - ४७०/470)
 (चौपई  :- सतगुरु नानक देव जी की वाणी में श्लोक शीर्षक के अंतर्गत यह छंद भी लिखा गया है। इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं।   
 "विसमादु नाद विसमादु वेद ।। विसमादु जीअ विसमादु भेद"।। (आसा दी वार  पन्ना -४६३ /463
 (सार छंद ( विषमपद )  श्लोक शीर्षक के अन्तर्गत यह छंद भी आता है। इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं। 
 "जेते जीअ फिरहि अउधूती आपे भिखिआ पावै।लेखै बोलणु लेखै चलणु काइतु कीचहि दावै"।। ( राग सारंग, पन्ना १२३८/ 1238
(उलाला छंद  :-  सतगुरु नानक देव जी की वाणी में यह छंद भी श्लोक शीर्षक के अंतर्गत लिखा गया है। इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं।   " सिदकु सबूरी सादिका सबरु तोसा मलाइकां।। दीदारु पूरे पाइसा थाउ नाहीं खाइका"।।   ( वार श्रीराग पन्ना- ८३ /83 )
. अष्टपदी :- अष्टपदी अपने आप में कोई छंद नहीं है। जिस श्लोक में आठ पद हों, उसे अष्टपदी कहा जाता है। सतगुरु जी की वाणी में अष्टपदी शीर्षक के अंतर्गत कई प्रकार के छंद लिखे गए हैं। 
() निशानी छंद :- इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। " किउ रहीऐ उठि चलणा बुझु सबद बीचारा ।। जिस तू मेलहि सो मिलहि धूरि हुकमु अपारा "।। ( राग मारु पन्ना -१०१२ /1012 )
() सार छंद :- इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं।"थिति वारु जोगी जाणै रुति माहु कोई।। जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई।। ( जपु जी साहिब पन्ना - / 4 )
(चौपई :- सतगुरु नानक देव जी की वाणी में यह छंद भी अष्टपदी शीर्षक के अन्तर्गत  लिखा गया है। "विसमादु रूप विसमादु रंग।। विसमादु नागे फिरहि जंत"।।  ( आसा दी वार पन्ना - ४६३ /463 )
. सुकाव्य छंद :- इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं।  "मैडा मनु रता आपनड़े पिर नालि।। हउ घोलि घुमाई खंनीऐ कीती हिक भोरी नदरि निहालि।। पेईअड़ै दोहागणी साहुरड़ै किउ जाउ।। मै गलि अउगण मुठड़ी बिनु पिर झूरि मराउ"।। ( मारू काफी महल्ला पन्ना -१०१४ / 1014 )  
. ताटंक छंद :- इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। "अंतरि सबद निरंतरि मुद्रा हउमै ममता दूरि करी।। काम क्रोधु अहंकारु निवारै गुर कै सबदि सु समझ परी।। खिंथा झोली भरिपुरि रहिआ नानक तारै एकु हरी।।  साचा साहिबु साची नाई परखै गुर की बात खरी"।।  ( पन्ना -९३९ / 939 ) 
. दोहरा :- दो पंक्तियों वाले छंद का नाम दोहरा या दोहा होता है।इस छंद के भी कई रूप गुरु वाणी में आए हैं।"खुदी मिटी तब सुख भए मन तन भए अरोग।। नानक द्रिसटी आइआ उसतति करनै जोगु"।। ( राग गउड़ी पन्ना २६० / 260 )
 ( ) नर दोहरा :- "हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि।। किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि"।।  ( आसा दी वार पन्ना- ४६६ / 466 )
पउड़ी :-  यह अपने आप में कोई छंद नहीं पर "पउड़ी" शीर्षक के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न रूपों में कई प्रकार के छंद लिखे गए हैं। आमतौर पर योद्धाओं में वीर रस भरने के लिए ढाडियों द्वारा, वार गायन के समय, प्रसंग सुनाने के उपरान्त "पउड़ी" गाई जाती थी। 
() "चटपटातथा "निशानी" छंद :- सतगुरु नानक वाणी में "पउड़ी" शीर्षक के अन्तर्गत छंद का यह रूप भी लिखा हुआ है। पउड़ी में इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं। 
    "संनी देनि विखम थाइ मिठा मदु माणी  करमी आपो आपणी आपे पछुताणी"।।  ( वार गउड़ी पन्ना-३१५ / 315 
(सुगीता छंद :- ये पंक्तियाँ सुगीता छंद में पउड़ी शीर्षक के नीचे लिखी गई हैं। इस छंद की चार पंक्तियाँ होती हैं। 
   "तू करता आप अभुलु है भुलण विचि नाही।। तू करहि सु सचे भला है गुर सबदि बुझाही"।।   ( वार गउड़ी पन्ना -३०१ / 301 )  
(राधिका छंद :- ये पंक्तियाँ राधिका छंद में पउड़ी शीर्षक के अन्तर्गत लिखी गई हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं।
 " इकि भसम चङ्हावहि अंगि मैलु धोवही।।इकि जटा बिकट बिकराल कुलु घरु खोवही "।।  (राग  मलारु पन्ना - १२८४ / 1284 )
(कलस छंद :- गुरु वाणी में कई छंदों के मेल से कलस छंद रचे गए हैं।  यहाँ कलस छंद "निता" एवं "सार" के मेल से बना है। इस की चार पंक्तियाँ होती हैं। 
 "सहजि मिलाए हरि मनि भाए पंच मिले सुखु पाइआ।। साई वसतु परापति होई जिसु सेती मनु लाइआ"।। 
"अनदिनु मेलु भइआ मनु मानिआ घर मंदर सोहाए।। पंच सबद धुनि अनहद वाजे हम घरि साजन आए"।।  ( राग सूही  पन्ना -७६४ / 764 )  
( हंसगत छंद :- यह छंद गुरु वाणी में पउड़ी शीर्षक के अन्तर्गत आता है। इस की चार पंक्तियाँ होती हैं। 
 "केते कहहि वखाण कहि कहि जावणा।। वेद कहहि वखिआण अंतु पावणा।। पड़िए नाही भेदु बुझिए पावणा।। खटु दरसन के भेखि किसै सचि समावणा"।। ( राग माझ पन्ना - १४८ / 148 )
 () पउड़ी का एक रूप यह भी है।  
      " दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै मसतकि लाईऐ।। कूड़ा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ "।। 
       "फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ।। जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिना दी पाईऐ"।।  ( आसा दी वार पन्ना- ४६८ / 468 ) 
प्रमाणिका छंद :- इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं।  " देव दानवा नरा।। सिध साधिका धरा।। असति एक दिगरि कुई।। एक तुई एक तुई"।।  ( वार माझ  पन्ना- १४३ / 143 )
१०रूपमाला छंद :- इसकी चार पंक्तियाँ होती हैं।कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु।। कूड़ु मंडप कूड़ु माड़ी कूड़ु बैसणहारु।। कूड़ु सुइना कूड़ु रूपा कूड़ु पेन्ह्णहारु।। कूड़ु काइआ कूड़ु कपड़ु कूड़ु रूपु अपारु"।।   ( आसा दी वार पन्ना- ४६८ / 468 )
११सोरठा :- यह छंद दो पंक्तियों का होता है। दोहरे के विपरीत है तथा इसमें तुकांत का मेल नहीं होता परन्तु मध्य में मेल होता है। 
                   "समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु।। कीड़ी तुलि होवनी जे तिसु मनहु वीसरहि"।।  ( जपु जी साहिब पन्ना - / 5 ) 





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रस भरी वाणी गुरु नानक की

सतगुरु नानक वाणी में आये काव्य रसों की व्याख्या 

            भरे वाक्यों से ही कविता बनती है। इस लिए रसपूर्ण कविता कई प्रकार के रसों से युक्त होती है। विभिन्न  भारतीय भाषाओं में ( उर्दू ग़ज़ल से बहुत पहलेअत्यंत उच्च कोटि की कविता लिखी गई और उत्तम साहित्य की रचना हुईजिसके विषय में हम भारतवासी ही भूल गए हैंऔरों की क्या कहें ? क्योंकि हम भारतवासियों में आत्म -सम्मान नहीं है। हमें इंग्लैंड के निवासी शेक्सपियर का नाम और नाटक तो याद हैंपरन्तु भारतीयों को कालिदास का नाम और उसके नाटकों के विषय में जानकारी नहीं। क्योंकि हम आज भी इंग्लैण्ड के गुलाम हैं।  
                     सर्वप्रथम भरत मुनि ने रस व्याख्या की थी। भरत मुनि की रस व्याख्या को आधार मानकर ही आगे और विद्वानों ने व्याख्या की है। कई विद्वान उसके साथ पूर्ण रूप से सहमत नहीं हैं। छंद,अलंकार और रस भारतीय काव्य के आवश्यक  अटूट अंग हैं। कविता पढ़ कर या सुनकर और वक्ता के हाव-भाव देखकर जो आनंद आयेवही कविता का 'रसहै। 'रसही कविता का वास्तविक सार होता है। कुछ रस लम्बे समय तक रहते हैं परन्तु कुछ कम समय के लिए ही रहते हैं। जैसे क्रोधशोकग्लानि आदि लम्बे समय तक नहीं रहते। 
                        "नानक सायर एव कहित है"  नानक शायर ने, 'नानक वाणीमें सभी रस लिखकर इस वाणी को रस भरपूर बना दिया है। यदि  इन रसों का हमें ज्ञान हो जाये तो रस-भरी गुरु नानक वाणी का रसहमें भी रस के आनंद से आनंदविभोर कर देगा। आइए हम भी कविता के रसों के बारे में ज्ञान हासिल कररस भरी वाणी का रसास्वादन करना आरम्भ करें। 
                          संगीत और काव्य शास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर के ही गुरु वाणी सही रूप से पढ़ीगाई तथा समझी जा सकती है। संगीत की  विशेषता है कि संगीत भक्ति-भाव को प्रचंड करता है। भक्ति भाव से भीगी  हुईभक्ति मार्ग की रचनाभक्ति संगीत में रचित है तथा रागों में गायन करने के लिएरागों में उच्चारण की हुई गुरु-वाणीमुख्य रूप से संगीत पर आधारित है।  
                          सतगुरु नानक देव जी ने अपने आप को शायर यानि कवि माना है। कवि रूप में गुरु जी ने कविता की रचना की है।  जिसमें से ९४७ / 947 श्लोक / शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंकित हैं। यह अति उत्तम कविता रूपी वाणीछंद-बद्ध काव्य रसों के साथ परिपूर्ण है और संगीतमई है। इस मनोहर वाणी का रसास्वादन करने हेतु सभी 'गुरु नानक नाम लेवाको संगीत और काव्य शास्त्र का ज्ञान होना अत्यावश्यक है।
                              आश्चर्य और खेद का विषय यह है कि सिक्ख पंथ को भी गुरु वाणी में प्रयुक्त काव्य रसों के बारे में ज्ञान नहीं है और कभी इस विषय पर उन्होंने सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझी। परन्तुसदैव ही हिन्दुओं का विरोधसभी सिक्ख - सम्प्रदायों का विरोध किया तथा आपस में ही लड़ने पर सम्पूर्ण शक्ति और समय लगा दिया। कीर्तन-प्रथा प्रचलित होने के कारण ३१ /31 रागों के बारे में तो कुछ खोज हुई है एवं कुछ सिक्खों को स्वर-ज्ञान भी है। परन्तुकाव्य शास्त्र में वर्णित रसों के विषय में सिक्खसर्वथा अनभिज्ञ हैं। गुरु वाणी में वर्णित काव्य रसों के बारे में सिक्ख विद्वानों को शोध  करके लिखने की आवश्यकता है। जगत गुरु जी की सर्वप्रिय वाणी "जपु जी साहिबमें ही कई प्रकार के छंद और काव्य रस हैं।  परन्तु सिक्ख विद्वानों ने कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। भले ही 'जपु जी साहिबके सैंकड़ों सटीक हो चुके हैं तथा कई भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है किन्तु जपु जी साहिब के छंदों या काव्य रसों के बारे में कभी किसी ने कोई व्याख्या करने की चेष्टा नहीं की। विचारणीय बात यह है कि सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली वाणी 'जपु जी साहिब ' और गाई  सुनी जाने वाली 'आसा दी वारमें प्रयुक्त काव्य रसों के सम्बन्ध  में ही यदि सिक्ख समुदाय को ज्ञान नहीं तो अन्य किस वाणी के विषय में होगा ?
        सतगुरु नानक देव जी की वाणी के काव्य पक्ष को उजागर करने के लिए उनकी वाणी में से रसों के विषय में अत्यंत संक्षिप्त जानकारी आपके लिए  प्रस्तुत है। प्रेमी पाठकों को काव्य शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त अर्थ समझ कररस का नाम स्वयं ही जानने की आवश्यकता है। काव्य रसों को समझकर ही हम गुरु वाणी में वर्णित रसों का रसास्वादन कर सकेंगे। 
                     काव्य शास्त्र में कविता के नौ रस सर्वमान्य हैंजिन के नाम इस प्रकार हैं ( श्रृंगार रसहास्य रसकरुणा रसरौद्र रसवीर रसभयानक रसवीभत्स रसअद्भुत रसशांत रस ) परन्तु भक्ति मार्ग के कुछ विद्वानों के अनुसार केवल पांच रस मान्य हैंजिन में से दो रस  'शांतऔर 'श्रृंगारतो पहले नौ में ही  जाते हैं बाकी तीन ये हैंदास रसवात्सल्य रस और सखा रस। इस तरह कुल काव्य रसों की संख्या १२ /12 हो जाती है। कुछ विद्वानों ने भक्ति को भिन्न रस माना है। यदि भक्ति को भी रस मान लिया जाए तो इसे मिलाकर रसों की कुल संख्या १३ /13 हो जाती है। विद्वानों ने सभी रसों का राजा 'श्रृंगार रसको माना है। 
   काव्य रसों के उदाहरण :- 
श्रृंगार रस :- कामयुक्त  ( इश्क मजाज़ी ) प्रेम भाव। जो नर और मादा के श्रृंगार करनेश्रृंगार को देखने और सुनने से उत्पन्न होउसे श्रृंगार रस कहते हैं।  इसका का स्थाई भाव 'कामेच्छा'  है। 
  नैन सलोनी सुंदर नारी। खोड़ सीगार करै अति पिआरी। दर घर महला सेज सुखाली। अहिनिसि फूल बिछावै माली।
  ( राग गौड़ीपन्ना २२५ / 225 )
हास्य रस :- किसी कारण प्रसन्नता पूर्वक हंसी आना। इसको हास्य - रस कहते हैं।  इसका स्थाई भाव 'हंसी' है। 
   वाइनि चेले नचनि गुर। पैर हलाइनि फेरन्हि सिर। उडि उडि रावा झाटै पाइ। वेखै लोकु हसै घरि जाइ।
  ( राग आसापन्ना ४६५ /465)
करुणा रस :-  अपनी इच्छा के विरुद्ध कोई हृदय विदारक घटना घटित होने के कारण जो दुखदाई अवस्था उत्पन्न होती है या किसी को दयनीय अवस्था में देखकरसुनकर,  मन में जो करुणा का भाव उमड़ता है उसे 'करुणा-रसकहते हैं   इसका स्थाई भाव 'शोक' है।  
जिन सिरि सोहनि पटीआ मांगी पाइ सन्धूरु। से सिर काती मुंनीअन्हि  गल विच आवै धूड़ि। महला अंदरि होदीआ हुणि बहणि  मिलन्हि हदूरि  राग आसापन्ना ४१७ / 417) 
रौद्र रस:- किसी के द्वारा मन या तन को किसी भी प्रकार का आघात पहुँचने के कारणउसके प्रति मन में जो प्रतिशोध की भावना उपजती  है , उसे  'रौद्र रसकहते हैं। इसका स्थाई भाव 'क्रोध' है।  
मुगल पठाणा भई लड़ाई रण महि तेग वगाई।। राग आसापन्ना ४१८ / 418) 
वीर रस :-  किसी विशेष प्रयोजन से किसी कार्य को प्रसन्नता तथा उत्साह से करने की तीव्र इच्छा को 'वीर रसकहा जाता है। इसका स्थाई भाव 'उत्साह' है। 
  लख सूरतण संगराम रण महि छुटहि पराण।।  राग आसापन्ना ४६७ / 467 )
.भयानक रस:- किसी डरावने दृश्यघटना या प्राणी को देखकरउसके बारे में पढ़ करसुन करजो भय का भाव मन में उत्त्पन्न हो , उसे भयानक रस कहा जाता है। इसका स्थाई भाव 'भय' है। 
  मम सर मूइ अजराईल गिरफतह दिल हेचि  दानी।। (राग तिलंगपन्ना ७२१ / 721)
वीभत्स रस :- किसी घृणित वस्तु या घटना को देखकर या उसके बारे में सुन करपढ़ करजो घृणा का भाव उपजे , उसे वीभत्स रस कहा जाता है। इसका स्थाई भाव 'घृणा' है।  
 रतन विगाड़ि विगोए कुतीं मुइआ सार  काई।।  राग आसापन्ना ३६० / 360)
अद्भुत रस:- किसी अलौकिक दृश्य को देखकर या पढ़-सुन कर आश्चर्य का जो भाव मन में उपजेउस भाव को 'अद्भुत रसकहते हैं। इसका स्थाई भाव 'आश्चर्यहै।   
  आदि सचु जुगादि सचु। है भी सचु नानक होसी भी सचु ।।  जपु जीपन्ना  /1)
शांत रस :-  विचार करने पर इस नश्वर संसार के प्रति जो विरक्त भाव उपजता है उसे 'शांत रसकहते हैं। इसका स्थाई भाव 'वैराग्यहै।   सुंन समाधि रहहि लिव लागे एका एकी सबदु बीचार ।। राग गौड़ीपन्ना ५०३ / 503 )
१०वात्सल्य रस :- प्रभु की ओर से अपने भक्तों के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए प्यार करने के भाव कोभक्तों की रक्षा करने के भाव को    (असीम अनुकम्पा का जो भाव उमड़ता हैवात्सल्य रस कहते हैं। इसका स्थाई भाव 'कर्तव्य अधीन प्रेम' है। 
   भगति वछलु भगता हरि संगि। नानक मुकति भए हरि रंगि ।।  राग आसापन्ना ४१६ /416)  
११दास रस :-  अपने ईष्ट के प्रति भक्ति भाव सहित विनम्रता बनाये रखने के भाव को 'दास रसकहते हैं। इसका स्थाई भाव 'नम्रताहै। 

  प्रणवति नानकु दासनि दासा दइआ करहु दइआला।।  राग बसंतपन्ना ११७१ /1171)
१२सखा रस :-  प्रेमाभक्ति में लीन हो कर अपने इष्ट को अपना सखा या मित्र मानने के भाव को 'सखा रसकहते हैं। इसका स्थाई भाव इष्ट में 'मीत भावहै। जो तुधु सेवहि से तुध ही जेहे निरभउ बाल सखाई हे।।  राग मारुपन्ना १०२१ / 1021)
१३.भक्ति रस :- कुछ पढ़ करसुन कर अथवा देख कर मनुष्य के मन में निष्ठाप्रेम तथा सत्कारपूर्वक अपने आराध्य के प्रति जो सेवा या  उपासना का भाव जन्म लेता हैउसे भक्ति रस कहते हैं। इसका स्थाई भाव 'श्रद्धा' है।   
  सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले।।  जपु जीपन्ना  / 6)

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